कौन है |
सुलग रही है आग सबके सीने में कहीं,
पर बात यह अलग है बताता कौन है |
है सबके पास अपनी दास्ताने ज़िन्दगी,
खामोश सब खड़े हैं सुनाता कौन है |
गैरों की महफिलों मैं जाके हाथ तो बढ़ा,
आज ये भी देख ले ज़रा की मिलाता कौन है |
ठहाकों के शोर में ना कभी दोस्त ढूंढना तुम,
चुपके से देखना मुस्कुराता कौन है|
गिले शिकवों की छाँव में ना सदा छाँव ढूंढना,
है सबको यह पता जलाता कौन है |
जी ले यह ज़िन्दगी तू इसे यूँ ही ना गवां,
एक बार निकल गए तो फिर आता कौन है|
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